
अब
मौत

अंत


ध्यान

मनुष्य मात्र की मोलिक समस्याओं का

ध्यान



अपनी ही खोज
अपने से ही पहचान

जिसे स्व बोध है
जिसे इस बात का होश हैं की मैं हूँ
पशु हैं पक्षी हैं वृक्ष हैं
हैं तो जरुर लेकिन अपने होने का
उन्हें कोई बोध नही
मनुष्य अकेला है
जिसे इस बात का बोध है
की मैं हूँ
अनिवार्य रूप से दूसरा प्रश्न उठेगा
की मैं हूँ कौन
हूँ सच
पर कौन हूँ
और जिसके जीवन में
यह दूसरा प्रश्न नही उठता
वह पशु तो नही हैं
मनुष्य भी नही है
कहीं बीच में अटक गया है
घर का न घाट का
उसके जीवन में
पशु की शान्ति भी नही होगी
और उसके जीवन में
परमात्मा का आनंद भी नही होगा
वैसा आदमी त्रिशंकु की तरह
अटका सदा अशांत होगा
मैं कौन हूँ
यह मनुष्य का एकमात्र प्रश्न है
यही उसकी एकमात्र खोज है
इसी खोज से
फिर आनंद के झरने बहते है
यह खोज जिस दिन पूरी हो जाती है
उस दिन तुम्हे वो सब मिल जाता जाता है
जो पशुओं को है
जो पक्षियों को है - चाँद तारों को है
और साथ में कुछ और मिल जाता है,
जो उनके पास नही है
साथ में प्रकाश मिल जाता है
साथ में होश मिल जाता है
पशु पोधे के जीवन में
एक आनंद- मग्नता है
मगर मूर्छित
फ़िर बुद्धों के जीवन में,
सिद्धों के जीवन में
एक आनंद- मग्नता है
सचेत जागरूक
एक मस्ती यहाँ भी है
पर उस मस्ती में
बोध का दिया जलता है
kya sundar ladkiyan hai!
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