Thursday, 25 December 2008

मानववाद आतंकवाद अलगाववाद नक्सलवाद आनंदवाद परार्थ॰वाद... इन वादों में विवाद ..देखिये ओशो नजर ...


सामंतवाद साम्राज्यवाद समाजवाद
साम्यवाद भौतिकवाद राज्य पूंजीवाद
व्यक्ति पूंजीवाद अस्तित्ववाद सर्वोदयवाद
मानववाद आतंकवाद अलगाववाद
नक्सलवाद आनंदवाद परार्थ॰वाद

इन वादों के पीछे क्या है गहरा विवाद
देखिये इन पर ओशो की नजर ...
जिसे हम समाजवाद कह रहें है


वह गरीब को अमीर बनाने की योजना नही है
वह अमीर को गरीब बनाने की योजना है
समाजवाद भीड़ है व्यक्ति स्वतंत्रता है
!


व्यक्ति के पास चेतना है
उस चेतना को प्रेरणा चाहिए ।
प्रेरणा विध्वंसक भी हो सकती है सर्जनात्मक भी ॥


जैसे देखिये नक्सलवाद को ....
नक्सलवाद की घटना कोई रेवोलुशन नही है
कोई फिलोसोफी नही है कोई दर्शन नही है
मात्र एक क्रोध से भरी बदले की भावना है


इसलिए जितने हम जिम्मेवार हैं
नक्सलवाद पैदा करने के लिए
उतने वो जिम्मेवार नही हैं ।


हम हजारों साल से बदले ही नही हैं
एक दम मरा हुआ समाज हैं
जिसकी नक्सली पैदाइश हैं।


नक्सली सिर्फ़ लक्षण है की अगर तुम नही बदलते ,
कोई और रास्ता जीने का नया नही बनाते तो ये होगा ।
समाज नक्सली को गाली देता है नक्सली समाज को
मगर ये दिमाग एक ही है उल्टे एक दूसरे के ।


अब ठीक ठीक विचार करने वाले के सामने दो सवाल हैं ।
वह यह कि या तो सर्जनात्मक रूप से समाज को बदले


नही तो विध्वंसक रूप नक्सली का झेले ।
सीधा साफ़ विकल्प है
क्रिएटिव रेवोलुशन या विचारहीन पागलपन ।
ध्यान रहे नक्सली को हटाना आसन नही
क्योंकि उनकी कोई व्यवस्था ही नही जिसे आप हटायें ।


किससे लडोगे आप ? क्या लडोगे ?
न नियम उनके , न कोई व्यवस्था न कोई बंधा ढांचा ।
नक्सली के कोई जीवन मूल्य नहीं है

वो बस तुम्हारे मूल्यों से परेशान हो गये हैं।
परेशान होना अलग बात है
मूल्यों का ग़लत होना अलग बात है ।
फ़िर से मूल्यों पर विचार हो ।



मुल्क में क्रोधित दिमाग नही
निगेटिव दिमाग पैदा हो
वो ध्यानस्थ चित जो देख सके
समझ सके -कुछ सच्चा अच्छा कर सके ।


मगर
कुछ करने से पहले कुछ मौलिक सत्यों पर ध्यान रहे
परार्थ॰वाद असम्भावना है
क्योंकि मनुष्य की चेतना मूलत स्वार्थी है

हाँ स्वार्थ विराट हो सकता है ।
ओशो दुनिया को आगाह करते हैं ...
पूजीवाद से समाजवाद आयेगा ।
समाजवाद से साम्यवाद आयेगा ।


साम्यवाद से अराजकतावाद आयेगा ।
लेकिन ये क्रमिक अवस्थाएं हैं ।
ये विरोध नहीं हैं ये विकास हैं ।
अत हम कह सकते हैं


पूंजीवाद प्राक्रतिक है समाजवाद मानवीय है
साम्यवाद जो कभी आ सकता है ध्यान चेतना से
उसे कहना होगा दिव्य है
जिसका सफल प्रयोग
अमेरिका ओरेगन में ओशो ने किया ।


मगर वो प्रयोग अमेरिका की नासमझी से नष्ट हुआ ।
वो साम्यवाद कभी दुनिया का भविष्य होगा
जिसे ओशो दुनिया को दे गये हैं ।


मार्क्स के साथ कृष्ण
आइंस्टाइन के साथ बुद्धा
और
आदमी के साथ ओशो होने से ये हो सकता है ।
होगा ।


शेष फ़िर...

हरिओम अग्रभारती



इस्लाम की आड़ में
आतंकवादी बनाने के बीज
कयामत
शहादत
जन्नत
कहते हैं.... कयामत के दिन मुर्दे जिन्दा हो जायेंगे
या अंतस कयामत के वक्त जिन्दा मुर्दा तत्त्व अलग हो जायेंगे

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